Monday, 30 December 2019

मेरी मन्नत !


मेरी मन्नत !

मैं उसे पाने को अपने रब से 
मन्नत और उसके कुछ अपनों 
से इल्तिज़ा किया करता हूँ ! 
जिसके लिए मैं कुछ अपनों 
और कुछ परायों का दिल अक्सर 
ही दुखा दिया करता हूँ ! 
मैं अब तो अक्सर ही अँधेरे में 
भी एक उससे ही तो बातें किया 
करता हूँ !
अब तक किसी को कुछ हासिल 
नहीं हुआ कुछ भी इस ज़िद्द से ये 
जानता हूँ !
मैं फिर भी ना जाने क्यों ये एक 
ज़िद्द अब बस दुआ की ही तरह 
किया करता हूँ !
समझाते है सभी अक्सर मुझे 
गर मेरी है वो तो कंही और वो 
जा नहीं सकती है !
गर परायी है तो मैं उसे पा नहीं 
सकता हूँ ! 
पर ना जाने क्यों ये ज़िद्द अब 
मैं बस दुआ की तरह किया 
करता हूँ !

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