Wednesday, 26 December 2018

मेरे दर्द को हर लेती है !

मेरे दर्द को हर लेती है !
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अक्सर वो मेरे बालो में 
अपनी पतली-पतली और 
लम्बी-लम्बी अंगुलिया 
फिराते फिराते हर लेती है;

मेरे हर दर्द को और एक 
शिशु की तरह सिमट जाता 
हु मैं उसकी गोलाकार बाँहों 
में और छोड़ देता हु;

खुद को बिलकुल निढाल 
सा उसके हवाले उसकी 
जकड़न में और कुछ देर 
बाद ख़त्म हो जाता है;

द्वेत का भाव यानी  
दो होने का भाव फिर 
गहरी सांसो के बीच
उठती गिरती धड़कने 
खामोश हो जाती है;

और मिलने लगती है 
आत्माए जैसे जन्मो की 
प्यासी हो और ऐसे ही 
पलो में साकार होता है
सपना ज़िन्दगी का !

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