Thursday, 21 June 2018

महसूसियत का दर्द

सुनो  ...
यु ही रोज
तेरे इंतज़ार में
जो दिन उगता है
वो कटता ही नहीं
जो रात आती है
वो गुजरती ही नहीं
परन्तु जो निरंतर
कटता और गुजरता
जा रहा है वो सिर्फ मैं हु
ये सब हो रहा है
तुम्हारे होते हुए और 
तुम्हारे ही इंतज़ार में
इस महसूसियत के दर्द
जब हद से बढ़ जाता है
तब रोता हु तो भी दर्द
कम नहीं होता जाने किन्यु
जो हँसता हु अकेले तो ये
दर्द बढ़ जाता है और जो
परन्तु जो निरंतर
कटता और गुजरता
जा रहा है वो सिर्फ मैं हु
जो बढ़ता जा रहा है
वो है तेरा इंतज़ार और
वो है मेरा प्यार  

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