Saturday, 18 December 2021

एक रोज़

एक रोज़ जब
मैंने सज्दे से
सर उठाया
तो देखा वो
वहां था ही नहीं
जिसको मैं जाने
कब से पूज रही थी
फिर मैंने सोचा
इस से क्या फ़र्क़
पड़ता है कि वो
वहां है की नहीं
इस से मेरी इबादत'
थोड़ी न व्यर्थ जाएगी !
©SRAMVERMA

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...