Monday, 24 September 2018

आखरी झपकियाँ



आखरी झपकियाँ
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कभी न कभी  
हमसब ज़िन्दगी  
के उस पन्ने पर 
पहुंचेंगे जंहा तकिये 
पर अटकी हमारी 
आखरी झपकियों 
के सहारे हम देख 
रहे होंगे अपनी आखरी 
ख्वाहिशों के सपने
वो सपने यही रहेंगे 
इसी धरा पर चाहे
यंहा हम रहे या ना रहे 
सपने होते ही है अमर
वो कभी नहीं मरते 
हम इंसानो की तरह 
उनकी उम्र ना हम 
तय कर पाते है ना 
ही तय कर पाती है 
विधाता और उन्ही 
अधूरे रह गए सपनो
की खातिर हम सब 
लेते है एक बार फिर 
पुनर्जन्म उन्ही अधूरे
रह गए सपनो को करने
एक बार फिर से पूरा 
हां एक बार फिर से पूरा !

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