Friday, 14 September 2018

वो खोया हुनर आँखों का

वो खोया हुनर आँखों का  
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वो आँखें जो देखा करती थी 
अपलक तुम्हे वो घुटन के 
दौर से गुजर कर भूल चुकी है
अपलक देखने का हुनर...

वो आँखें जो सजाया करती थी 
हमदोनो के सुनहरे भविष्य के सपने 
वो आँखें अब एक-एक कर बहाया करती है
उन दम तोड़ते सपनो को अश्को के सहारे...

वो आँखें जो सदैव आतुर रहती थी
इस दुनिया को छोड़कर तुम्हारे साथ 
अपनी एक अलग दुनिया बसाने को उन  
आँखों ने अब वीरान से जंगल को बसा लिया है 

वो आँखें जो तुम्हारी आँखों से होती हुई 
जा समायी थी तुम्हारी रूह के रसातल में
वही ऑंखें आज बेसहारा होकर ढूंढ रही है 
उसी तुम्हारी रूह को जिसने उससे वडा किया था 
सदा-सदा के लिए खुद में बसाये रखने का...

वो आँखें जो देखा करती थी 
अपलक तुम्हे वो घुटन के 
उस दौर से गुजर कर भी 
एक बार फिर सीखना चाहती है 
अपना वो खोया हुनर पर सिर्फ तुमसे !

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