Wednesday, 14 March 2018

प्यार में फनाह होना

चाहती हु तेरे प्यार में फनाह होना 
मैं कहा अभी नहीं थोड़ा रुको और 
अपनी रातें बिताओ दिन सरीखी 
दिन में देखो वो सारे ख्वाब जो मैंने बो दिए थे 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों में और 
फिर करो मिन्नतें मुझसे मिलने की 
ठीक वैसे ही जैसे मैं करता था तुमसे 
और मैं गिनाऊ तुम्हे तुम जैसी ही 
अनगिनत मज़बूरियां और तुम बिना
नाराज़ हुए समझो मेरी सारी मज़बूरियां 
और जब फुर्सत मिले मुझे उस वक़्त तक 
गर कुछ टुटा हो अंदर तुम्हारे उसे जोड़ो 
और उन फुर्सत के छनो में आकर मिलो 
तुम मुझसे जैसे कुछ हुआ ही ना हो 
और इस तरह गुजारो  अपने पांच
बसंत बचे यौवन के फिर गर कुछ बचे
प्रेम मेरे लिए तुम्हारे अंदर तो वादा
रहा आना पास मेरे दोनों होंगे हम 
एक दूजे के प्यार में फनाह

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