Thursday, 26 October 2017

मेरे एहसास का एक पन्ना

मेरे एहसास 
के पन्नो पर 
एक पन्ना लिखा है मैंने 
तेरे हर किये वादे का 
जिक्र भी है उसमे और
उन वादों को ना निभा 
पाने की तेरी वजह भी है 
और उस वजह में खोती
मेरी एहमियत का 
जिक्र भी किया है मैंने
और तेरे फिर से किये 
एक नए वादे का जिक्र भी है 
और है उस नए वादे में के 
साथ मेरे भरोषे का भी जिक्र 
और जिक्र है तेरी हर एक 
लापरवाहियों का और 
मेरी हर एक परवाह का  
मेरे एहसास 
के पन्नो पर 
एक पन्ना लिखा है मैंने

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...