अलसुबह जब
चुगने जाती हूँ
जमीन पर बिखरे
पारिजात को मैं
उन्हें चुगते हुए
नित्य लेती हूँ
संकल्प जीवन
पर्यन्त तुमसे उन
पारिजात सा प्रेम
करते रहने का मैं !
तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...
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