Sunday, 1 March 2020

ना-उम्मीदों के पल !


ना-उम्मीदों के पल !

ना-उम्मीदों के उन पलों  
में भी यूँ लगता है मानो 
मेरे दिल की धड़कन बन 
मुझमें समाये हो तुम 
उम्मीदों के उन पलों में  
भी यूँ लगता है मानो मेरी 
सांसों की सरगम बन मुझमें
ही कहीं गुनगुना रहे हो तुम 
गर अँधेरा ही लिखा है मेरे 
नसीब में तो यक़ीनन मेरी 
उम्मीदों के चिराग नज़र 
आते हो मुझे तुम  
इसलिए आज के बाद कभी 
मत पूछना तुम मुझे कि क्यों 
करती हूँ मैं इतना प्यार तुम से !

No comments:

स्पर्शों

तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...