उसके सही वक़्त
के इंतज़ार में मेरी
ज़िन्दगी गुजर रही है
रफ्ता रफ्ता
वो बैठा सोच रहा
समय उसे छू कर
गुजरे जा रहा
जब तक सही
वक़्त आएगा
वक़्त के निशां
चेहरे पर नज़र
आ ही जायेंगे
तब गीली पलकों
को क्या छुअन
की सिरहन पोंछ
पाएंगी !
उसके सही वक़्त
के इंतज़ार में मेरी
ज़िन्दगी गुजर रही है
रफ्ता रफ्ता
वो बैठा सोच रहा
समय उसे छू कर
गुजरे जा रहा
जब तक सही
वक़्त आएगा
वक़्त के निशां
चेहरे पर नज़र
आ ही जायेंगे
तब गीली पलकों
को क्या छुअन
की सिरहन पोंछ
पाएंगी !
तेरे अनुप्राणित स्पर्शों में मेरा समस्त अस्तित्व विलीन-सा है, ये उद्भूत भावधाराएँ अब तेरी अंक-शरण ही अभयी प्रवीण-सा है। ~डाॅ सियाराम 'प...